Saturday, April 24, 2010

दुनिया के लोग

लघु कथा

एक महात्मा घूम घूम कर लोगो को धर्म के रह पर चलने का वास्तविक उपदेश दे रहे थे / घूमते घूमते वह एक व्यक्ति के घर पहुंचे / व्यक्ति ने महात्मा को प्रणाम किया / महात्मा ने देखा कि व्यक्ति के तीन बच्चे है / घर भौतिक वादी आधुनिता से और वैशिवक संस्कृति से परिपूर्ण था / महात्मा ने कहा वत्स में धर्म का प्रचारक हूँ / धर्म के शिक्षा फैलाना चाहता हूँ / क्या तुम अपने एक बच्चे तो भी धर्म कि शिक्षा के लिए मेरे आश्रम में भेजोगे / व्यक्ति काफी देर सोचता रहा और अंत में बोला महाराज मेरे छोटे बच्चे को आप धर्म कि शिक्षा दीजिये / महात्मा बोले तुमने इतनी देर तक सोचा और छोटे लडके को ही क्यों चुना ?
व्यक्ति ने कहा महाराज यह लड़का मेरे दोनों लड़को कि तुलना में पढाई में होशियार नहीं है / अध्यापक इसे मूर्ख कहते है / तो मै यह चाहूँगा कि यह धर्म कि शिक्षा ले / महात्मा बोले आज के परिपेक्ष्य में देखा जाए तो आश्चर्य है / लोग अपने मूर्ख लड़को को धार्मिक शिक्षक , धर्म गुरु बनाना चाहते है / उसके विपरीत बुद्धिमान को दुनिया दारी में ही रहने देना चाहते है / क्या विडम्बना है / वत्स खैर मूर्ख भी बुद्धिमान है / बस समझने का अंतर है / जब एक पागल को पूरी दुनिया पागल लगाती है और पागल को दुनिया के लोग जानते हुए भी पागल कहते है / लेकिन दुनिया के लोग यह नहीं जानते कि पागल तो वह है जो प्रक्रति और लोगो के साथ अमानवीय वर्ताव कर रहे होते है / महात्मा मूर्ख बच्चे को स्वीकार करते हुए कहते है यह उन समझदारो से कई गुना बेहतर है जो अपने को समझदार समझाते हुए भी राष्ट्र , मानवता के साथ पागलपन करते है / ऐसे पागलो कि खाश तौर पर भारत में कमी नहीं है /

सैयद परवेज़