Thursday, February 25, 2010
Sunday, February 21, 2010
अनिल चित्रकार ..........
२४ वे सूरजकुंड मेले में कला की बात करे तो देश विदेश के कलाकारों ने भाग लिया / चाहे व हस्त कला हो , मूर्तिकला ,पत्थरों पर नक्काशी हो ,चाहे लकडियो की छोटी छोटी नक्काशी से लेकर बड़े बड़े फर्नीचरो पर अद्भूत नक्काशी /कला की सुन्दरता बिखेरती चित्रकारी की बात ही निराली है /मैं तुलनात्मक अध्ययन नहीं कर रहा , लेकिन कुछ लोग , कलाकार ऐसे भी होते है जो दिल को छू जाते है /
उन्ही में से एक चित्रकार देखने में बिलकुल साधारण मिटटी पर बैठा हुआ व्यक्ति जोकि आज के वैश्विक संस्कृति ,भागती दुनिया में एकांत बैठा हुआ था और बदलते परिवेश को प्राकृतिक रंगो से विभिन्न रूपों में दिखा रहा था / बहुत से चित्रकारी युही पड़ी हुई थी / मेले की भीड़ शायद उसे देख नहीं पा रही थी या आधुनिकता की चादर ओढे समाज के पास इतना समय नहीं था / फिर भी चित्रकार प्रसन्न था /पूछने पर पता चला की इनका नाम अनिल चित्रकार है , जोकि अमदुबी गाँव ,पोस्ट पन्दा झारखण्ड से आये है / आपनी चित्रकारी से झारखण्ड लोक संस्कृति , बदलते परिवेश , भारतीय संस्कृति की विभिन्नताओ में एकता को उजागर करना चाहते है / उनके पास बैठा लगा की वास्तविक व्यक्ति के पास बैठा हूँ / जहाँ समानता है , बराबरी है . शायद उंच वर्ग या आमिर वर्ग मुझ से ज्यादा बात नहीं करता , क्योकि उनको पूछने वाले जयादा है / भूले भटके लोग कला कृतियों को देखने आ रहे थे / जोकि साधारण कागजो पर वास्तविक प्राकृतिक रंगों से बनी हुई थी / ऐसा लग रहा था , मानो झारखण्ड के आदिवासी समाज लोक संस्कृति आप से बात करना चाहती है / कला की कोई कीमत नहीं होती पारिश्रमिक के तौर पर वह १००- २००-३००- ५००-१०००-रुपये चित्र के अनुसार निश्चित थे / आप कभी भी झारखण्ड आये तो अमादुबी गाँव ,पोस्ट पन्दा में अनिल चित्रकार से मुलाकात जरुर करे
सैयद परवेज़
बदरपुर नई दिल्ली -44
Tuesday, February 9, 2010
कुछ सोचे ...........
पर्यावरण और जंगली जानवरों से लेकर पालतू पशुओं तक हमें सोचना होगा ? क्या इनका अस्तित्व बचा रहेगा ?एक तरफ शहरी करण बढ रहा है , दूसरी तरफ मानवता का विनाश करने वाले लोग संगठन बन गए है /प्रश्न है क्या मानवता बची रहेगी ? क्या मानव का अस्तित्व बचा रहेगा ? बैगेर प्रक्रति के क्या मानव का अस्तित्व बचा रहेगा ? पेडो की संख्या कितनी बची है ? क्या हमें दिखाई देता है ? एक तरफ लोग भूखे मर रहे है /दूसरी तरफ भूखे लोगो को मार रहे है / एक तरफ अधिकारों की बाते होती है दूसरी तरफ अधिकारों को हनन हो रहा है / दुनिया अजब निराली है ,विभिन्न विभिन्न तरह के लोग यह विभिन्न तरह की माया है / लोग संगठन बना कर पार्टी बनाकर यह भूल जाते है की यह दुनिया एक इश्वर का कैद खान है / यहाँ मानवता ही सब कुछ है / लोग समझे और सोचे /
Sunday, February 7, 2010
किसका बाड़ा .........
सपने में मेरी मुलाक़ात एक विद्वान् व्यक्ति से हुई /मैंने प्रणाम किया और अपना परिचय दिया / वह बोले बतावो और क्या सोचते हो /मैंने कहा आप के बराबर तो नहीं सोच पता हूँगा , लेकिन अच्छा बनाने और करने की जरूर सोचता हूँ / प्रथ्वी एक ऐसा कैद खाना है ,जहाँ जीवन के लिए वह सभी चीजे विधमान हैं , जो मानव को चाहिए /चाहे वह हवा पानी या सूर्य की रोशनी इत्यादि / मनुष्य चाहते हुए भी इस कैद खाने से भाग नहीं सकता , विश्वास नहीं तो भाग कर तो दिखाए /भागने के पीछे आत्म-हत्या शामिल नहीं है /
एक हमारी व्यवस्था का मानव -निर्मित कैद खाना है / जहाँ से भगा जा सकता है और पूंजीपति वर्ग , ऊँचे पदों वालो के लिए दिखावा / मानव निर्मित कैद खाने का ही रूप हमने देखा रुचिका केस / क्यों महिलावो को न्याय दिलने में कानून इतना ढीला ? कानून सिर्फ दबंग , ऊँचे पदों , के साथ क्यों ? खेर जिसकी अपनी सीमाए निर्धारित है /विद्वान् व्यक्ति बोले समय हो गया है , चलता हूँ /
मैंने आगे देखा की बहुत सारे जानवर एक बाड़े में बंद है /सभी को एक बड़ा जानवर आपस में लड़ा रहा है /उसने कहा सुनो भाइयो बाड़े में लड़ाई का मुख्य करण जानवरों की अधिकता है /अब हम नियम बनायेगे की बाड़े में किसे शामिल करना है या नहीं /नियम नानना शुरू हुआ की देश की संविधान व्यवस्था कुछ नहीं है /हम जो चाहेगे करेगे / यह बाड़ा हमारा है /हम संविधान से उलटा कार्य करेगे /बाड़े में रह रहे विभिन वर्गों के जानवरों को बोलने का हक़ नहीं है / जो हम सोचते है वाही ठीक है /हमारी ही लठाभाषा ,sअन्स्कृति कार्य करेगे और बड़े में राज करेगी / क्यों की यह बाड़ा बलिदान से बना है /हमारे लिए लोकतंत्र के मायने अपने बड़े में अपने जानवरों तक सीमित रहना चाहिए /हमें कुछ मतलव नहीं की इस बाड़े की विकास किसने किया / मै उस बड़े जानवर की बाते सुनता रहा और सोचा जानवरों का शोषण करने की लिए इस का अपना बहुत बड़ा स्वार्थ है /पता किया की कौन है /पता चला की यह शिव सेना के बहुत बड़े जानवर बाल ठाकरे है / अंत में और पता चला की एक और बड़े जानवर राज ठाकरे है /जो ज्यादा ही सोचते है / इतना तो अनुसन्धान करने वाला व्यक्ति भी नहीं सोचता है /खेर सोचना अधिकार है / अब तो सूचना का भी अधिकार है /
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