Sunday, February 21, 2010

अनिल चित्रकार ..........



२४ वे सूरजकुंड मेले में कला की बात करे तो देश विदेश के कलाकारों ने भाग लिया / चाहे व हस्त कला हो , मूर्तिकला ,पत्थरों पर नक्काशी हो ,चाहे लकडियो की छोटी छोटी नक्काशी से लेकर बड़े बड़े फर्नीचरो पर अद्भूत नक्काशी /कला की सुन्दरता बिखेरती चित्रकारी की बात ही निराली है /मैं तुलनात्मक अध्ययन नहीं कर रहा , लेकिन कुछ लोग , कलाकार ऐसे भी होते है जो दिल को छू जाते है /
उन्ही में से एक चित्रकार देखने में बिलकुल साधारण मिटटी पर बैठा हुआ व्यक्ति जोकि आज के वैश्विक संस्कृति ,भागती दुनिया में एकांत बैठा हुआ था और बदलते परिवेश को प्राकृतिक रंगो से विभिन्न रूपों में दिखा रहा था / बहुत से चित्रकारी युही पड़ी हुई थी / मेले की भीड़ शायद उसे देख नहीं पा रही थी या आधुनिकता की चादर ओढे समाज के पास इतना समय नहीं था / फिर भी चित्रकार प्रसन्न था /पूछने पर पता चला की इनका नाम अनिल चित्रकार है , जोकि अमदुबी गाँव ,पोस्ट पन्दा झारखण्ड से आये है / आपनी चित्रकारी से झारखण्ड लोक संस्कृति , बदलते परिवेश , भारतीय संस्कृति की विभिन्नताओ में एकता को उजागर करना चाहते है / उनके पास बैठा लगा की वास्तविक व्यक्ति के पास बैठा हूँ / जहाँ समानता है , बराबरी है . शायद उंच वर्ग या आमिर वर्ग मुझ से ज्यादा बात नहीं करता , क्योकि उनको पूछने वाले जयादा है / भूले भटके लोग कला कृतियों को देखने आ रहे थे / जोकि साधारण कागजो पर वास्तविक प्राकृतिक रंगों से बनी हुई थी / ऐसा लग रहा था , मानो झारखण्ड के आदिवासी समाज लोक संस्कृति आप से बात करना चाहती है / कला की कोई कीमत नहीं होती पारिश्रमिक के तौर पर वह १००- २००-३००- ५००-१०००-रुपये चित्र के अनुसार निश्चित थे / आप कभी भी झारखण्ड आये तो अमादुबी गाँव ,पोस्ट पन्दा में अनिल चित्रकार से मुलाकात जरुर करे

सैयद परवेज़
बदरपुर नई दिल्ली -44

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