Sunday, January 4, 2009

भाईया और डाकिया
सैयद परवेज
एक रोजगार समाचार में प्रकाशित हुआ, मुम्बई सेन्ट्रल के डाकघरों में पोस्ट मैंनों की भर्ती एक बिहारी युवक भर्ती की खबर को पढ़कर दुविधा में सोचता है कि आवेदन करू या नही।एक हरियाणी मित्र ने अपने लहजे से समझाया अबे चावल अभी देखा नही कि कितनें बिहारियों की पिटाई की गई। साले तू डाकिया बने या ना बने। तेरा पत्र तेरे पिता जी को जरूर मिलेगा कि लड़के को मनसे वालों ने इतना पीटा कि आप का लड़का नही रहा और छानबीन के अनुसार आप का लड़का आंतकी और हिंसक वारदातों में शामिल भी था खैर, सरकार आपको एक लाख रूपये की क्षतिपूर्ति कर रही है।
वैसे जो चला जाता है, उसकी क्षतिपूर्ति पैसे से नही की जा सकती है, युवक ने मित्र की बात नही मानी, सलाह के लिए एक अध्यापक के पास गया अध्यापक ने सलाह दिया, कि बेटा मनसें से क्या डरना पूरा भारत एक है, तुम कही भी भ्रमण कर सकते हों नौकरी पा सकते हो भारत एक धर्मनिरपेक्ष, स्वतंत्र, लोकतन्त्र है। क्षेत्रवाद-जातिवाद, भाषावाद जैसी विषमता तो आजादी मिलते ही समाप्त हो चुकी है। यह तो उपद्रवी, आतंकी है। ऐसे दुष्टो से क्या डरना और डर कर भी जीना कोई जीना है, तुम निःसंकोच आवेदन करो। तुम्हे सफलता मिलेगी।
युवक जोश में आकर आवेदन करता है और अन्त में डाकिया बन कर पत्र लेकर घर-घर जाता। युवक को कुछ लोग जानने लगे और भईया डाकिया पुकारने लगे। अब उसका सम्बोधन भईया और डाकिया से हो रहा है। अब युवक पत्र लेकर जाये ंतो लोग कहतें कि भईया आया है। एक दिन युवक मनसे के दफ्तर में पत्र लेकर पहुॅचा और मानसे वालों ने उसे पहचान लिया और महाराष्ट्र की अस्मिता के साथ जोड़कर कहा, भईया और डाकिया, नही चलेगा डाकिया होगा तो महाराष्ट्री होगा भईया नही तुम बिहार जाओं नही तो हम तुम्हें खुद ही भेज देगें। युवक ने कहा मैंनेें परीक्षा से नौकरी पाई है। तुम भी पा सकतें थें मनसे वालों ने कहा कि भईया विरोध करता है विरोध का फल मिला कि मनसें तथा सैना ने उसे ऊपर भेज दिया। युवक का मृत्यु पत्र उसके पिता को मिला गृह मंत्री ने कहा यह उपद्रवी था। बड़ी जांच होगी।
इसी बीच मुम्बई के होटलों में आतंकी हमले हो गए। फायरिंग हुई देश के जवान शहीद हुए और जीत मिली। बाद में देश के गृह मंत्री और मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दे कर कहा हमारे बस की बात नही। अब युवक भूत बन चुका है। कहां गयी मनसे की सेना जो आतंकी और आतंकवाद को खत्म करें। महाराष्ट्र की अस्मिता खतरें में थी। देश के जवानों की मौत से पहलें सेना और मनसे बीच में क्यों नही आयें। बहुत सोचनें का प्रश्न हैं ऐसी सेना सिर्फ चूहे है, जो आतंक का दूसरा रूप है।

2 comments:

  1. I have read your article.I find very interesting.

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  2. awesome piece of writing syed parwez.by writing this blog u have put forward few question which so far no body have raised.i appreciate it.keep it up.

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