Friday, December 2, 2011

samajik pripekshy me upeksha ke shikaar bachche

ओल्ड फरीदाबाद बस स्टैंड से मैं अपने मित्र के साथ सेक्टर १६ ए की तरफ जा रहा था / ऐसे ही कुछ बाते करते जा रहे थे / कि रस्ते में एक छोटी बच्ची दिखाई दी / उम्र तक़रीबन ७ या ८ वर्ष रही होगी / वह हमारे तरफ आने लगी थी / मित्र जो काफी अनुभवी है / बच्ची उसे पकड़ती तब, तक वह बच कर आगे निकल आया / शायाद उसने अनुभव कर लिया था / कि बच्ची उसे पकड़ेगी / वैसे अनुभव के लिहाज़/ से मेरे सभी मित्र मुझ से बेहतर है / खैर बच्ची ने मुझे पकड़ लिया था / उसने एक हाथ में प्लेट के ऊपर भगवान् की मूर्ति लिए हुई थी / तथा दुसरे हाथ से उसने मेरे शर्ट को पकड़ा हुआ था / और एक एक रुपया कह कर पैसे मांगने लगी / उस दौरान मेरे पास सिर्फ २० रुपये थे / जो की बस के भाड़े थे / मैंने अपनी स्थिति भांपते हुए कहा की नहीं हैं पैसे / मित्र ने व्यंग्य कसते हुए ऊपर से और कह दिया की इनके पास पैसे है / यह सुनते ही वह शर्ट खीचने लगी थी / ना देने में असमर्थ समझ कर मुझे बड़ा बुरा लग रहा था / मैंने दुबारा कहा नहीं हैं , पैसे / तब भी उसने शर्ट नहीं छोड़ा , शायाद बच्ची मुझ से पैसे प्राप्त करने की आशा रखती थी / शर्ट न छोड़ने पर मैंने घुस्से से कहा , छोड़ पिटेगी क्या ? फिर उसने शर्ट छोड़ दिया / लेकिन प्रश्न उठा की हमारे समाज में अपराध की उत्पति कैसे हो रही है / अगर उस बच्ची की ज़गह कोई बदमाश चाकू दिखता तो मुझे इस बात की परवाह न रहती की बस के भाड़े का क्या होगा ? मैं उसे पैसे जरुर दे देता / चाहे मुझे वहाँ से पैदल घर ही क्यों न आना पड़ता ? ऐसी घटना से एक बात उभरती है की कोई अपरध की तरफ रुझान करता है, तो हमारा समाज की उसे उभरता है / और कोई नहीं / इस वाकेया पर मुझे अपने आप पर बड़ी लज्जा महशुस हुए और उस बच्ची की स्थिति पर आंसू आ गए थे / प्राय सड़को पर कूड़ा बीनते बच्चे / कूड़ा बीनते बीनते नशे की आदि हो रहे है / यह ऐसे वेसहरा बच्चे है , जो उपेक्षा के शिकार है / नशा वह भी कपडे के ऊपर लिकविड फ्लूड , सुलोषण जो थिनर आदि का होता है / उस पर डाल कर चूस रहे होते है / ऐसे बच्चो के समूह को मैं हर रोज़ देखता हूँ / प्रशासन , कानून व्यवस्था सभी तो हैं / कानून अँधा है क्या ? ज्यदातर सुनने में यही आता है / बताना पड़ता है / एक पुलिस थाने में ऐसे बच्चो के बारे में बताने ही गया था / ज़वाब मिला बच्चो को अपने घर ले जायो / ऐसे ही बच्चे सड़को की किनारे या रेड लाइट चौराहों पर भीख मंगाते और बन्दर नाच करते नज़र आते है / अकसर आप भी ओल्ड फरीदाबाद , ओखला मोड़ , आई .टी .ओ . चौक या दिल्ली एन .सी .आर . में देख सकते है / यह मासूम बच्चे जिन्हें ज़िन्दगी की वास्तविकता से दूर होते हुए भी इस दुनिया को आंतरिक तौर पर कितना समझ चुके होते है / उन्हें पता है की ऐसे नाचने चलने से पैसे मिलेगे / उन मासूम बच्चो को यह पता नहीं की वह अपना कीमती बचपन को रहे है / आगे चल कर यह बच्चे गलत दिशा की तरफ बढ जाते है , तो इसमें इनकी क्या गलती है ? हम कितने मुर्ख है / ऐसे बच्चो पर प्रकाश नहीं डाल पा रहे है / ऐसे निर्दोष बच्चो को मार्ग न दिखा कर , दंड देना सामाजिक नियम मानते है / आवश्यकता है ऐसे बच्चो को शिक्षा के अधिकार के तहत राज्य सरकार इनकी पोषण का खर्च ईमानदारी से उठाये / ताकि बच्चे शोषित और कुपोषित न हो सके / भारत में ऐसे लोगो की कमी नहीं है जो अपनी मुर्तिया और शानो शौकत , आडम्बर के लिए पैसा बहा रहे है / लेकिन इन बच्चो की स्थिति को सुधरने में इनको लज्जा आती है / ऐसे लोगो को समझते और देखते हुए मुंह से निकालता है दुनिया अजाब निराली है , विभिन्न तरह के लोग यहाँ विभिन्न तरह की माया है / विभिन्न तरह के कैद यहाँ / पर लोग भूल जाते है की यह इश्वर का कैद खाना है / अगर हम अपने लिए जी रहे है तो बड़ी बात नहीं है दूसरो के लिए जीना बड़ी बात है

सैयद परवेज़

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